सुपर बाजार क्या होता है:-
सुपर बाजार एक बड़ी फुटकर व्यापार करने वाली इकाई है, जो मुख्यत: खाद्य एवं किराना वस्तुओं का कम लाभ पर विक्रय करती है। इनके यहां अधिक बिक्री, विभिन्न प्रकार की वस्तुएं, स्वयं सेवा और व्यापारिक अपील पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
सुपर बाजार दो शब्दों के जोर से बना है 'सुपर' + 'बाजार' का शाब्दिक अर्थ है उत्तम या साधारण से कुछ अधिक और 'बाजार' का अर्थ है व्यापार स्थल। इस प्रकार सुपर बाजार उस व्यवसाय के स्थान को कहते हैं जो साधारण व्यवसाय के स्थानों से उत्तम हो, बड़ा हो, वह जिसकी अपनी कुछ विशेषताएं हो।
सुपर बाजार की विशेषताएं:-
इसमें दैनिक प्रयोग की वस्तुओं का विक्रय किया जाता है।
इसमें विक्रय कर्ताओं के स्थान पर स्वयं सेवा का सिद्धांत अपनाया जाता है।
यह अधिकांशतः बड़े- बड़े नगरों में पाए जाते हैं।
इसमें वस्तुओं के चुनाव की स्वतंत्र सुविधा होती है।
मूल्य अपेक्षाकृत कम होते हैं।
विक्रय नगद होता है।
पैकिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिससे कि ग्राहक वस्तु को खरीदने के लिए और आकर्षित हो।
वस्तु खुले खानों में सजाई जाती है।
यह विभागीय भंडार से मेल खाती हुई एक संस्था होती है।
विभिन्न वस्तुओं के लिए अलग-अलग विभाग बना दिए जाते हैं।
सुपर बाजार का उद्गम:-
सुपर बाजार सर्वप्रथम 1930 में न्यूयॉर्क में स्थापित किया गया था। उस समय भारी मंदी के कारण बाजार की स्थिति नाजुक हो गई थी। ऐसे समय उपभोक्ताओं को वस्तुएं उपलब्ध करवाने के लिए इसकी स्थापना हुई थी। इसके बाद दूसरा सुपर बाजार भी न्यूयॉर्क शहर में ही Big Bear नाम से खोला गया। इनमें सभी वस्तुएं उपलब्ध कराई जाती है। इसलिए सुपर बाजार को निर्धन व्यक्तियों के स्टोर भी कहा जाता है। जापान में 1953 में और इंग्लैंड में 1956 में इनकी स्थापना आरंभ हुई। आजकल इनका प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।
सुपर बाजार के गुण:-
एक ही स्थान पर अधिक वस्तुएं उपलब्ध होने के कारण अधिक विक्रय होता है।
सुपर बाजार में बहुत सारी वस्तुएं होती हैं जिसकी वजह से उपभोक्ताओं को वस्तुओं का चुनाव करने में अत्याधिक सुविधा होती है।
सुपर बाजार में वस्तुओं को बहुत अधिक मारता है जिसकी वजह से वह वस्तुएं सस्ती दर मे मिल जाती हैं। अतः इसका लाभ ग्राहक को भी उपलब्ध होता है।
सुपर बाजार में मोल- भाव की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि हर वस्तु पैकिंग में होती है और उसकी पैकिंग पर ही उस वस्तु का मूल्य लिखा होता है।
सुपर बाजार में नगद विक्रय से रकम डुबने का भय नहीं होता।
निम्न व मध्य स्तरीय ग्राहकों का आकर्षण का केंद्र सुपर बाजार होता है।
सुपर बाजार के दोष:-
सुपर बाजार को एक बहुत ही बड़े पैमाने पर खोला जाता है एवं इसमें कई सारी व्यवस्थाएं भी करनी पड़ती है, इसलिए सुपर बाजार में अत्याधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।
सुपर बाजार में साधारण ग्राहकों की पहुंच के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने में बहुत कठिनाई आती है।
वस्तुओं किचन में सलाह का अभाव देखने को मिलता रहता है।
सुपर बाजार में साख सुविधा का भी अभाव होता है।
तकनीकी तथा भारी वस्तुओं के लिए अनुप्रयुक्त।
चोरी की संभावना सुपर बाजार में निरंतर बन रहती है।
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